समुन्दर किनारे गिरी एक बोतल कांच की
जो किसी शाम में कहकहों के बीच थी
आहिस्ता से थामते थे उसे हाँथों में
उसकी एक अहमियत थी, वो क़ीमती थी।
समुन्दर किनारे गिरी एक बोतल कांच की
अब बस ठोकरों के लगने पे खिसकती है
ढलती शाम में सूरज की विदाई करती
आज अंधेरे में अकेली पड़ी है।
सोचती है अग़र मैं दब के टूट जाऊँगी
तो चुभ जाउंगी किसी अनजान पैरों में
जो ना टूटी और यूँ ही रही तो
गीली रेत में दब के कहीं खो जाउंगी।
इसी कशमकश में थी की तभी
दो नन्हे हाथों ने उसको थाम लिया
उठाया और देखा गौर से उसको
फिर अपने झोले मे डाल लिया।
जो किसी शाम में कहकहों के बीच थी
आहिस्ता से थामते थे उसे हाँथों में
उसकी एक अहमियत थी, वो क़ीमती थी।
समुन्दर किनारे गिरी एक बोतल कांच की
अब बस ठोकरों के लगने पे खिसकती है
ढलती शाम में सूरज की विदाई करती
आज अंधेरे में अकेली पड़ी है।
सोचती है अग़र मैं दब के टूट जाऊँगी
तो चुभ जाउंगी किसी अनजान पैरों में
जो ना टूटी और यूँ ही रही तो
गीली रेत में दब के कहीं खो जाउंगी।
इसी कशमकश में थी की तभी
दो नन्हे हाथों ने उसको थाम लिया
उठाया और देखा गौर से उसको
फिर अपने झोले मे डाल लिया।