ऐ अधीर मन मेरे
क्यूँ नहीं कहीं टिकता है तू
स्थिरता से क्यूँ नहीं नाता तेरा
क्यूँ बावरा सा फिरता है तू
तू कभी धरती पर तो कभी
आसमान में रहता है
बादलो के साथ उड़ता है
पानी के साथ बहता है
अब तो आजा ज़मीन पर
देख चंचलता अच्छी नहीं
टिक जा किसी एक पर
यूँ अधीरता अच्छी नहीं
चल तुझे एकाग्रता से मिलवाता हूं
अनुशासन में उड़ना सिखाता हूं
शायद तेरी गति को राह मिल जाए
सबसे ऊँची शाख पर कैसे पहुचना है
तू ये समझ जाए